सोहन लाल पाठक : बर्मा की जेल में शहीद हुआ एक भारतीय क्रांतिकारी


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सोहन लाल पाठक का जन्म 7 जनवरी 1883 को अमृतसर में हुआ था, बचपन से ही पढ़ने में काफ़ी तेज़ थे, कम उम्र में ही काफ़ी तजुर्बा हासिल कर लिया। लाहौर टीचर ट्रेनिंग स्कूल से पढ़ाई करने के बाद टीचर की हैसियत से पढ़ाने लगे; कई ज़ुबान पर उबूर हासिल था। साल 1901 में शादी हो गई। यही वो दौर था के पंजाब में क्रांतिकारी सरगर्मियाँ बढ़ने लगी थी, सूफ़ी अम्बा प्रसाद, सैय्यद हैदर रज़ा और सरदार अजीत सिंह एक तरफ़ खुल कर मैदान में थे।

वहीं लाला लाजपत राय ने भी मोर्चा सम्भाल रखा था। लाहौर में क़याम के दौरान उनका तालुक़ात लाला लाजपत राय से हुआ; पर ये बात स्कूल के हेडमास्टर को पसंद नही आई; उन्होंने सोहन लाल पर दबाव बनाना शुरू किया, जिसके विरोध में उन्होंने टीचर की नौकरी 1908 में छोड़ दी और लाला लाजपत राय की साथ खुल कर काम करने लगे; उस ज़माने में लालाजी बन्दे मातरम् नाम का एक उर्दू अख़बार निकाला करते थे; सोहन पाठक उसमें उनकी मदद करने लगे।

इधर लाहौर में ही “यंग्समैन इण्डिया ऐसोसिएशन” की स्थापना लाला हरदयाल ने की थी, सोहन लाल पाठक का यहाँ उठना बैठना शुरू हुआ; और उनके अंदर भारत को आज़ाद करवाने का जज़्बा बड़ी तेज़ी से बढ़ने लगा।

1909 में सोहन लाल पाठक थाईलैंड पहुँचे; कुछ दिन वहाँ गुज़ारने के बाद 13 जनवरी 1913 को फ़िलिपींस की राजधानी मनीला पहुँचे; वहाँ कई क्रांतिकारीयों के साथ अमरीका 18 अप्रिल 1913 को पहुँचे। यही वो दौर था जब विदेश में रह रहे क्रांतिकारीयों ने मिल कर एक संगठन की बुनियाद डाली; जिसे आज ग़दर पार्टी के नाम से जाना जाता है, 1912–1913 में प्रवासी भारतियों ने Hindi Association of the Pacific Coast बनाई थी। सोहन सिंह भकना को इसका पअध्यक्ष बनाया गया था। यह एसॉसिएशन ही बाद में ग़दर पार्टी कहलाई।

ग़दर पार्टी की नींव 25 जून 1913 को रखी गई, दुनियां भर के क्रांतिकारियों ने हाथ मिलाया। लंदन में श्याम जी कृष्ण वर्मा, भारत में बाघा जतिन, रास बिहारी बोस, अमेरिका में करतार सिंह सराभा, विष्णु पिंगले और भारत से अफ़ग़ानिस्तान पहुँचे मौलवी बरकतुल्लाह भोपाली, राजा महेंद्र प्रताप व मौलवी ओबैदुल्लाह सिंधी जैसे क्रांतिकारियों ने कमान संभाल ली। ऐसे में सोहन लाल पाठक भला कहाँ पीछे रहने वाले थे; वो भी पूरी तरह सक्रिय हो गए।

इसी बीच गाटाकामारू प्रकरण से उत्पन्न स्थितियों के खिलाफ़ कनाडा में हुसैन रहीम, बलवंत सिंह और सोहन लाल पाठक की अगुवाई में एक शोर कमेटी बनाई गई, जिसने चंदा करके यात्रियों के लिए क़ानूनी लड़ाई लडऩे की योजना बनाई। सोहन लाल इस कमेटी के ख़ज़ांची थे।

असल में भारतीय क्रांतिकारीयों ने 1914 में शुरू हुए विश्वयुद्ध को भारत को आज़ाद करवाने के एक मौक़े के तौर पर देखा; उनका इरादा था कि ब्रिटेन जब युद्ध मे फंस जाएगा तो 1857 की तरह हर भारतीय छावनी में क्रांति का बिगुल बजा दिया जाए और देश को आज़ाद करवा लिया जाए। गाटाकामारू प्रकरण ने इसमें और बल दिया।

अलग अलग नवजवान क्रांतिकारीयों को अलग जगह की ज़िम्मेदारी दी गई, बाघ जतिन को बंगाल तो करतार सिंह और रहमत अली जैसों को पंजाब भेजा गया। चूँकि सोहन लाल पाठक ने काफ़ी समय बर्मा-थाईलैंड के इलाक़े में गुज़ारा था, इसलिए उन्हें उस इलाक़े की ज़िम्मेदारी दी गई। इनका काम वहाँ फ़ौजी बग़ावत को भड़काना था। सितम्बर 1914 को अमेरिका से वो इस मिशन पर निकले; अक्तूबर में जापान पहुँचे; वहाँ बाबू हरमन सिंह सहरी से मिले; कुछ दिन उनके साथ रह कर पूरा प्लान बनाया।

फ़रवरी 1915 में फिर थाइलैंड के बैंपिन पहुँचे। 19 फ़रवरी 1915 को ही पूरे भारत में बग़ावत का झंडा बुलंद करना था; पर नाकामयाबी हाथ लगी; पर सोहन पाठक ने हार नही मानी, वो रहेंग होते हुवे मार्च 1915 में रंगून पहुँचे। यहाँ बड़ी संख्या में भारतीय आबाद थे। उन्हें अपने काम को अंजाम देने में बहुत जद्दोजेहद की ज़रूरत नही थी; पर अफ़सोस ग़द्दारों ने अंग्रेज़ों तक ख़बर पहुँचा दी। और 15 अगस्त 1915 को सोहन लाल पाठक अपने कई साथियों के साथ गिरफ़्तार कर लिए गए; उन लोगों के ऊपर जो केस चला वो मांडालय कोंसप्रेसी केस के नाम इतिहास में दर्ज है।

10 फ़रवरी 1916 को बर्मा के मांडालय जेल में बग़ावत के लिए सिपाहीयों को उकसाने के जुर्म में सोहन लाल पाठक को फाँसी दे दी गई। इस केस में बाबू हरमन सिंह को फाँसी दी गई थी और इनके इलावा बाबू कपूर सिंह मोही और भाई हरजीत सिंह जैसे क्रांतिकारियों को आजीवन करावास की सज़ा सुनाई गई।

साल 1917 में मांडालय कांसप्रेसी केस में 3 सिपाहीयों को बग़ावत के जुर्म में सज़ा ए मौत मिलती है; जिसमे जयपुर के रहने वाले मुस्तफ़ा हसन, लुधियाना के अमर सिंह और फ़ैज़ाबाद के अली अहमद का नाम शामिल था। इनके इलावा जिन और लोगों पर बग़ावत का शक था वो हैं मुकसुद्दीन अहमद, ग़यासउद्दीन अहमद, अब्दुल क़तार, नसरुद्दीन और उनकी बेटी रज़िया ख़ातून। इधर करतार सिंह और रहमत अली जैसे क्रांतिकारी लाहौर कोंसप्रेसी में फाँसी के फंदे पर चढ़े और बाघ जतिन को पुलिस इनकाउंटर में शहीद कर दिया गया।


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Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.