कांग्रेस की ख़ुफ़िया रेडियो सेवा, जिसने की अंग्रेज़ों की नींद हराम….


Share this Post on :

 

ब्रिटिश सरकार ने 9 अगस्त 1942 को गांधी सहित अधिकतर कांग्रेसियों को गिरफ़्तार कर लिया। और भारत में चलने वाले सभी निजी लाइसेंस ज़ब्त कर लिए गए। आदेश था कि सभी ट्रांसमीटर नष्ट कर दिए जाएं और उन्हें थाने में जमा करा दिया जाए।

तब छात्रनेत्री उषा मेहता; जिन्हे उषा बेन के नाम से भी जाना जाता है, ने अपने कांग्रेसी साथी विट्ठल भाई झावेरी, चंद्रकांत झावेरी और बाबूभाई ठक्कर के साथ मिलकर एक गुप्त रेडियो चलाने का प्लान बनाया। रेडियो प्रसारण के लिए उन्होने इंग्लैंड से रेडियो टेक्नोलॉजी सीखकर आये नरीमन प्रिंटर से मदद मांगी और इनका साथ दिया भावसिंह मोरजी “बॉब” तन्ना और नानक मोटवानी ने।

प्रिंटर के पास रेडियो ट्रांसमीटर लगाने का लाइसेंस था, लेकिन दूसरा विश्वयुद्ध शुरू होते ही सारे निजी लाइसेंस ज़ब्त कर लिए गए। आदेश था कि सभी ट्रांसमीटर नष्ट कर दिए जाएं और उन्हें थाने में जमा करा दिया जाए। प्रिंटर ने अपना ट्रांसमीटर नष्ट तो किया पर थाने में जमा नहीं किया था। बाबुभाई ठक्कर की मदद से गराज से निकाले पुराने ट्रांसमीटर के लिए नए पुर्ज़े ख़रीदे गए और इस तरह ट्रांसमीटर तैयार हो गया। रेडियो स्टेशन का नाम ‘द वॉयस ऑफ़ फ़्रीडम’ रखा गया।

27 अगस्त 1942 को बॉम्बे के चौपाटी इलाक़े में किसी इमारत में ट्रांसमीटर लगा कर कांग्रेस के गुप्त रेडियो का प्रसारण शुरू किया गया। इस रेडियो स्टेशन के पहले प्रसारण में उषा मेहता ने इन शब्दों के साथ शुरूअात की : “यह इंडियन नेशनल कांग्रेस का रेडियो है, 42.34 मीटर बैंड्स पर आप हमें भारत में किसी स्थान से सुन रहे हैं।”

अंग्रेज़ उनको न पकड़ सकें इसलिए रेडियो स्टेशन का स्थान रोज़ बदला जाता था। पुलिस की दबिश लगातार जारी थी और कुछ ही दिनों में ट्रांसमीटर छह अलग-अलग जगहों पर ले जाना पड़ा। पहले चौपाटी में सी व्यू बिल्डिंग, फिर वालकेश्वर रोड पर रतन महल और वहां से अजित विला होते हुए गिरगांव बैंक रोड पर पारेख वाड़ी। आख़री मुक़ाम महालक्ष्मी के पास पैराडाइज़ बंगला था। यहीं पुलिस ने 12 नवंबर, 1942 को छापा मारकर कांग्रेस रेडियो के सारे लोगों को गिरफ़्तार किया।

‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का संदेश सहित अन्य ख़बरें, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने अपने प्रसारणों में सेंसर कर दिया था, इस रेडियो स्टेशन ने प्रसारित किया जाने लगा। साथ ही रोज़ राष्ट्रवादी नेताओं के संदेश भी प्रसारित किये जाते थे।

अंग्रेज़ों से बचते बचाते उषा मेहता द्वारा संचालित कांग्रेस का यह गुप्त रेडियो कुल 88 दिनों तक ही चल सका।

उस अंधकार भरे उन क्षणों में कांग्रेस सीक्रेट रेडियो ने हिन्दुस्तानियों के बीच पंथनिरपेक्षता, अंतरराष्ट्रीयता, भाईचारा और स्वतंत्रता की भावना का प्रसार किया।

11 नवंबर 1942 को बॉब तन्ना अपने एक सहायक स़के साथ गिरफ़्तार कर लिए गए; पर अंग्रेज़ों को उनके विरुद्ध कोई सबूत नही मिला; पर 12 नवंबर 1942 को नरीमन प्रिंटर हिरासत में लिए गए; जो फ़ौरन ही अंग्रेज़ों से सहयोग करने को राज़ी हो गए। नरीमन प्रिंटर पुलिस को लेकर विट्ठल भाई झावेरी के दफ़्तर पहुंच गए; जहां से भुमिगत हो चुके कांग्रेसी नेता गिरफ़्तार कर लिए गए। आख़िरकार उषा मेहता को 27 नवंबर 1942 को उनके साथियों के साथ रेडियो प्रासारण केंद्र से गिरफ़्तार कर लिया।

पुलिस ने मामले की जांच पूरी की। मामला अदालत में पेश हुआ तो उसमें पांच लोगों के नाम थे। विशेष न्यायाधीश जस्टिस एनएस लोकुर की अदालत में सुनवाई हुई और 14 मई, 1943 को फ़ैसला आया।

जज ने बाबूभाई ठक्कर, चंद्रकांत झावेरी और ऊषा मेहता को जेल की सज़ा सुनाई, लेकिन विट्ठलदास झावेरी और शिकागोराडियो कंपनी के नानक मोटवानी को सारे आरोपों से बरी कर दिया।

न्यायमूर्ति लोकुर ने कहा, “अफ़सोस की बात है कि मामले के सबसे प्रमुख किरदार नरीमन प्रिंटर को मैं सज़ा नहीं दे पा रहा हूं। सारा किया-धरा उसका था, लेकिन वह सरकारी गवाह बन गया।”

इस मंहगे रेडियो स्टेशन को चलाने के लिए पैसे कहां से आते थे; ये उस समय तक रहस्य बना रहा जब तक राममनोहर लोहिया गिरफ़्तार नही कर लिए गए। असल में ये पूरा रेडियो स्टेशन चंदे पर चलता था जो बंम्बई के अनाज विक्रेता, सूती कपड़े व्यापारी और ट्रेड असोसिएशन के लोग दिया करते थे।


Share this Post on :
Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.