जब छ: सौ साल बाद किसी ईसाई के क़ब्ज़े में गया येरुशलम


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प्रथम विश्व विश्व युद्ध के दौरान 17 नवम्बर 1917 से 30 दिसम्बर 1917 तक चली जंग में ग्रेट ब्रिटेन ने जहां आस्ट्रेलिया, भारत और न्युज़ीलैंड के सिपाहीयों की मदद से 9 दिसम्बर सन 1917 को अपने 18000 सिपाहीयों को खो कर उस्मानी सलतनत के 25000 सिपाहीयों को मार कर फ़लस्तीन में मौजूद सबसे महत्वपुर्ण शहर अल-क़ुदुस (येरुशलम) को जीत लिया था; जहां उस्मानी सलतनत के साथ जर्मनी के सिपाही लड़ रहे थे। 2 अक्तुबर 1187 के बाद अल-क़ुदुस (येरुशलम) 9 दिसम्बर 1917 को पहली बार किसी गैर-मुस्लिम के हांथ मे गया था। {इससे पहले सलीबयों ने 15 जून 1099 को पहली बार अल-क़ुदुस (येरुशलम) को जीता था।}

इस पर आधिकारिक मोहर उस समय लग गया जब ब्रिटिश सेना का सेनानायक जेनेरल ऐलेनबे अपने फ़्रंच, अमरीकी और ईटालियन फ़ौज के कमांडर के साथ दोपहर 1 बजे 11 दिसम्बर 1917 को Jaffa Gate से अल-कुदुस (येरुशलम) में पैदल दाख़िल हुआ; जहां उसका भारत, इंगलैंड, फ़्रांस, अास्ट्रेलिया, वेल्स, न्युज़ीलैंड, स्कॉटलैंड, आयरलैंड, इटली के सिपाहीयों ने स्वागत किया।

जेनेरल एलेनबे कई सौ साल बाद पहला ईसाई शख़्स था जिसने अल-कुदस यानी येरुशलम पर अपना अधिकार स्थापित किया था।

फ़लस्तीन पर ब्रिटिश सैनिकों का अधिकार इस लिए महत्वपूर्ण था क्योंकि यह उस समय के ब्रिटिश विदेश मंत्री बेलफ़ोर के घोषणा पत्र का एक हिस्सा समझा गया जो एक महीने पहले ही जारी हुआ था। इस घोषणा पत्र में ब्रिटिश विदेश मंत्री ने फ़लस्तीन में ज़ायोनी देश (इस्राईल) बनाने का वादा किया था और इस क्षेत्र पर ब्रिटेन के अधिकार से इस वादे के पुरे होने का चांस बढ़ गया था।

11 दिसम्बर 1917 को न्युयार्क हेरालड ने अल-कुद्स (येरुशलम) की जंग के ख़ात्मे की ख़बर को अपने फ़्रंट पेज पर “Jerusalem is rescued by British after 673 Years of Moslem Rule” लिख कर शाय की थी।

वहीं युनाईटेड किंगडम के प्रधानमंत्री डैविड लॉयड जार्ज ने अल-कुदस (येरुशलम) के क़ब्जे को “अंग्रेज़ो को मिले क्रिसमस का तोहफ़ा कह कर ख़िताब किया”।

इस जंग ने जहां इंगलैंड के मोरल् को बूस्ट कर दिया वहीं उस्मानीयों के कमर को पुरी तरह तोड़ दिया था।
अंग्रेज़ों ने अगले वर्ष 1918 के अक्तूबर महीने में दोनों पक्षों के बीच युद्ध रोकने और शांति के समझौते पर हस्ताक्षर होने तक मध्यपूर्व के अधिकांश क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था।

वहीं जब फ्रांस के कमांडर Henri Gouraud अपनी सेना के साथ दमिश्क़ में दाख़िल हुए तो सबसे पहले सलाहउद्दीन की मज़ार पर गए, उसको अपनी लातों से मारा और कहा,  “The Crusades have ended now! Awake Saladin, we have returned! My presence here consecrates the victory of the Cross over the Crescent”. ‘’क्रुसेड्स अब ख़त्म हुआ. उठो सलाडीन हमलोग वापस आए हैं. मेरी यहां मौजूदगी क्रीसेंट पर क्रॉस की जीत को दर्शाती है.’’


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Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.