आख़िर जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम ही अंग्रेज़ों के ज़ुल्म की सबसे बड़ी निशानी क्युं बनी?


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Md Umar Ashraf

आजके रोज़ ही 1919 को जालियांवाला बाग़ में क़त्ल ए आम हुआ था। सैंकड़ो की तादाद में लोग क़त्ल कर दिये गए थे। इस क़त्ल ए आम से पूरा हिन्दुस्तान हिल सा गया। एैसा नही है के हिन्दुस्तान में इससे पहले क़त्ल ए आम नही हुआ; इससे पहले भी कई बड़े बड़े क़त्ल ए आम हिन्दुस्तान में अंग्रेज़ों द्वारा अंजाम दिये गए। पर इस क़त्ल ए आम के बाद जो बेदारी और जागरुकता हिन्दुस्तान कि अवाम में आई वो पहले कभी नही आई।

क़त्ल ए आम के बाद बेदारी और जागरुकता क्युं आई ? क्या आपने इस बारे में कभी सोचा है।

मेरे हिसाब से इसका सबसे बड़ा कारण हिन्दुस्तान में चलने वाली ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक है।

ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक के दौर में मौलाना मुहम्मद अली जौहर, शौकत अली, बी अम्मा, मोहनदास गांधी जैसे अज़ीम रहनुमा पुरे हिन्दुस्तान के कोने कोने में गए। ना सिर्फ़ कलकत्ता से निकल कर मद्रास, लाहौर से निकल कर देल्ही; बल्के बंगाल, बिहार और मध्य भारत के सुदूर में मौजूद गांव तक का दौरा किया।

इन तमाम जगह होने वाली तक़रीरों में जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम की ख़ूब मज़म्मत और निंदा की गई, लोगों को बार बार “पंजाब में हुए ज़ुल्म” की कहानी बताई गई। इसी ज़ुल्म का हवाला दे कर लोगों से ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक में सहयोग मांगा गया। अवाम का भरपूर सहयोग भी मिला।

ख़िलाफ़त तहरीक के टॉप पांच रहनुमा में एक नाम डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू का है, जिनके समर्थक ही जालियांवाला बाग़ में जमा हुए थे; और गोलियां खाई।

असल में, 1919 में, ब्रिटिश हुकूमत ने भारत में क्रांतिकारी गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए रोलेट ऐक्ट लेकर आने का फ़ैसला किया था। ऐक्ट के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार के पास शक्ति थी कि वह बिना ट्रायल चलाए किसी भी संदिग्ध को गिरफ़्तार कर सकती थी या उसे जेल में डाल सकती थी।

डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू ने पंजाब में रॉलट एक्ट का जम कर मुख़ालफ़त किया और इसे आंदोलन का रूप देकर इसकि अगुवाई की।

रॉलेट एक्ट के विरोध में डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू ने 30 मार्च 1919 को जालियांवाला बाग़ में एक जल्सा कर अंग्रेज़ों की जम कर मुख़ालफ़त की जिसमें तीस हज़ार से अधिक लोग शरीक हुए थे। और इसके बाद 6 अप्रील को हुए हड़ताल को भी कामयाब बनाया। अंग्रेज़ी हुकुमत घबरा गई। इधर 9 अप्रील 1919 को राम नवमी के दिन अमृतसर में हिन्दु मुस्लिम एकता का बेहतरीन नमुना देखने को मिला जिसके बाद पंजाब के मशहूर नेता डॉक्टर सत्यपाल सिंह के साथ डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू को रोलेट ऐक्ट के तहत ही गिरफ़्तार कर लिया गया और अज्ञातावास भेज दिया गया, शायद धर्मशाला भेजा गया। इसी गिरफ़्तारी के विरोध में, कई प्रदर्शन हुए, रैलियां निकाली गईं। ब्रिटिश सरकार ने अमृतसर में मार्शल लॉ लागू कर दिया और सभी सार्वजनिक सभाओं, रैलियों पर रोक लगा दी।

13 अप्रैल 1919 को इन्ही लोगों के समर्थन में हज़ारो लोगों ने जालियांवाला बाग़ के अंदर अंग्रेज़ों के हांथो गोली खाई थी। गोली खाने वाले लोग डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू और डॉ सतपाल सिंह के ही समर्थक थे जो सैफ़ुद्दीन और सतपाल सिंह की रिहाई की मांग के लिए जमा हुए थे। सत्यपाल सिंह के साथ सैफ़ुद्दीन किचलू को उम्र क़ैद की सज़ा हुई, पर शहीदों का ख़ून ज़ाया नही गया, अवाम के दबाव में आ कर अंग्रेज़ो ने 1919 के आख़िर में इन दोनो को छोड़ दिया। इस समय डॉ. सैफ़ुद्दीन किचलू की उम्र मात्र 31 साल थी।

इसी सैफ़ुद्दीन किचलू ने ख़िलाफ़त तहरीक को लीड किया और ‘पंजाब पर हुए ज़ुल्म’ को ख़िलाफ़त और असहयोग तहरीक के स्टेज से अली बेरादरान और गांधी जी की मदद से पूरे हिन्दुस्तान में फैलाया। लोगों के ज़ेहन में एैसा डाला के आज भी उस क़त्ल ए आम को सौ साल बाद किया जा रहा है। वर्ना क़िस्साख़ानी, हांथीख़ाने जैसी जगह में भी निहत्थे हिन्दुस्तानीयों के क़त्ल ए आम हो चुके हैं, पर उन्हे कौन जानता है ?? अब तो लंदन के मेयर सादिक़ ख़ान ने भी जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम के लिए इंगलैंड कि जानिब से माफ़ी मांगी है, पर उन दर्जनों क़त्ल ए आम के बारे में कोई जानता भी नही जो जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम से पहले और बाद में हुए थे। जिनमे मरने वालों की तादाद किसी भी मामले में जालियांवाला बाग़ क़त्ल ए आम से कम नही था।


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Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.