जब अयोध्या की बाबरी मस्जिद ‘हिन्दु मुस्लिम एकता’ की मिसाल हुआ करती थी!


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Md Umar Ashraf

बाबरी मस्जिद और राम मंदिर का असली खेल 1857 के बाद शुरु हुआ है। 1850 और 1853 के बीच एकाध मौक़ा आता है, जब अयोध्या में रहने वाले हिन्दु और मुसलमान मज़हबी और धार्मिक बुनियाद पर आपस में टकरा जाते हैं! ये टकराव हनुमान गढ़ी के पास मौजूद मस्जिद को लेकर होता है! इसी बीच बाबरी मस्जिद भी हिंसा के ज़द में आती है! ये मामला उस समय शांत हो जाता है जब हनुमानगढ़ी मंदिर के पुजारी महंत बाबा रमचरण दास और अयोध्या के ही एक सुफ़ी मौलवी अमीर अली मिल बैठ कर इस मामले को सुलझा देते हैं!

इन दोनो में समझौता हुआ के जैसा चल रहा है, वैसा ही चलेगा! कोई मंदिर मस्जिद का झगड़ा नही होगा। जो जहां इबादत कर रहे हैं, वहीं करेंगे। 1857 के इंक़लाब के विफ़ल होने तक इस समझौते पर लोग टिके रहे।

1857 के बाद अवध सहीत पुरे हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ों का क़ब्जा़ हो गया। 1857 के इंक़लाब में अवध ने बेगम हज़रत महल और अहमदउल्लाह शाह फ़ैज़ाबादी की क़यादत में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया था। हिन्दु मुस्लिम हिन्दुस्तान में अपने मज़हब को बचाने के लिए साथ लड़े थे। पर हार गए।

हुआ कुछ युं के चिनाहट की लड़ाई 30 जून, 1857 को अंग्रेज़ों और इंक़लाबीयों के बीच, चिंतहाट जो के लखनऊ के पास है, में लड़ी गई थी। अंग्रेज़ों का नेतृत्व हेनरी लॉरेंस ने किया था। इंक़लाबी बरकत अहमद की क़यादत में लड़ रहे थे; यह लड़ाई इंक़लाबीयों ने जीती थी, अंग्रेज़ों का कमांडर हेनरी लॉरेंस तक मारा गया। जिसके बाद इंक़लाबी जिनमे साधु और मौलवी की एक बड़ी तादाद थी लगातार विभिन्न स्थानो को जीतते हुए आगे बढ़ते रहे। मार्च 1858 तक अयोध्या शहर अंग्रेज़ों से आज़ाद रहा और 3 मार्च 1858 को अंग्रेज़ों ने पहले लखनऊ को जीता फिर 17 मार्च 1858 को फ़ैज़ाबाद भी उनके हांथ मे चला गया और फिर उन्होने चुन चुन कर बदला लेना शुरु किया। 18 मार्च 1858 को महंत राम चरणदास, मौलवी अमीर अली, अच्छन ख़ान सहीत कई इंक़लाबीयों को कुबेर टिला के पास मौजूद एक पेड़ पर लटका कर फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया। पंडित शंभु प्रसाद शुक्ला जो के वासुदेव घाट के पुजारी थे और अयोध्या में इंक़लाबीयों को लीड कर रहे थे; ने 2 अगस्त 1858 को इस जगह कुबेर टिला के पास मौजूद उस पेड़ के रूप में एक “हिन्दु मुस्लिम ऐकता समाधी” अपने शहीद हुए साथीयों की याद में बनाने की कोशिश करी और एक बार फिर किसानो की मदद से अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया। बड़ी तादाद में इंक़लाबी शहीद हुए और पंडित शंभु प्रसाद शुक्ला गिरफ़्तार कर लिये गए और उन्हे 13 नवम्बर 1858 को फांसी के फंदे पर लटका दिया गया। और साथ ही उस पेड़ को भी काट दिया गया जिसे समाधी का रुप दिया गया था।

ये अंग्रेज़ों के लिए ख़तरे की घंटी थी; हिन्दु मुस्लिम एक दुसरे की ख़ातिर जान दे रहे थे, यहां तक के बाबरी मस्जिद भी देने को तैयार हो गए। कई किताब के हवाले से पढ़ने को मिलता है के अयोध्या के मुसलमान हिन्दु मुस्लिम ऐकता की बुनियाद पर बाबरी मस्जिद का एक बड़ा हिस्सा 1857 में हिन्दुओं के हवाले करने को तैयार थे। कई जगह ये भी मिलता है के उन्होने हिन्दुओं के हवाले कर भी दिया था। वैसे भी अयोध्या की बाबरी मस्जिद और रामजन्म भूमि अयोध्या शहर का मामला था, बाहरी लोगों का नही। क्युंके ना तो बाबरी मस्जिद में बाहर के मुसलमान इबादत करने जाते थे और ना ही अयोध्या के बाहर के हिन्दु ख़ास कर उस जगह पुजा करने जाते; पर बहुत ही शतिराना ढांग से इसे हिन्दुस्तान का सबसे बड़ा मुद्दा अंग्रेज़ों ने बनाया और फिर क्या हुआ सबको पता है!

अंग्रेज़ों ने अयोध्या पर क़ब्ज़ा करने के बाद मंदिर के महंत और मस्जिद के इमाम तक को सूली पर लटका दिया। और फिर अपने लोग को महंत और इमाम घोषित कर दिया। इन लोगों ने पहले हुए महंत बाबा रमचरण दास और मौलवी अमीर अली के बीच के समझौते को कूड़े की ढेर में फैंक दिया और शुरु कर दी मंदिर और मस्जिद लड़ाई! हिन्दुओं और मुसलमानो में फूंट डालने के लिए बाबरी मस्जिद के आहते में बाड़ डाले गए और इस तरह अंग्रेज़ों की “फूट डाल – राज करो” की साजिश अपने उरूज पर पहुंची जिसका असर आज तक हम देख रहे हैं! और उम्मीद है की आने वाली 20-25 नस्ल और देखेगी!

क्युंके अब अगर महंत बाबा रमचरण दास और मौलवी अमीर अली आ भी जायें तो बाबरी मस्जिद के क़ातिल को सज़ा मिले बिना कोई समझौता और सुलह नही हो सकता; बाक़ी हठधर्मी ही हो सकता है, जो हर 6 दिस्मबर को शौर्य दिवस के रूप में दिखता है।


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Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.