दुर्गाबाई देशमुख : बीएचयू में महिलाओं के अनुभव


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Shubhneet Kaushik 

प्रसिद्ध स्वतन्त्रता सेनानी दुर्गाबाई देशमुख बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के महिला महाविद्यालय की छात्रा रहीं। वर्ष 1934-36 के दौरान बीएचयू से ही उन्होंने इंटरमीडिएट की परीक्षा दी। वे आगे भी बीएचयू में ही रहकर पढ़ाई करना चाहती थीं। उनकी इच्छा थी कि वे राजनीति विज्ञान से स्नातक की पढ़ाई करें। लेकिन बीएचयू के संस्थापक मदन मोहन मालवीय ने उन्हें यह कहते हुए मना कर दिया कि राजनीति विज्ञान पुरुषों के पढ़ने का विषय है, महिलाओं के लिए नहीं। उल्लेखनीय है कि 1919-1938 के दौरान मदन मोहन मालवीय ही बीएचयू के कुलपति थे। मालवीय ने दुर्गाबाई के साथ यह व्यवहार तब किया, जबकि वे जानते थे कि दुर्गाबाई सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के कारण एक साल के लिए जेल की सजा काट चुकी हैं।

आखिरकार दुर्गाबाई देशमुख ने राजनीति विज्ञान में उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए आंध्र यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। जिन दुर्गाबाई देशमुख को मदन मोहन मालवीय ने राजनीति विज्ञान की पढ़ाई करने से मना कर दिया क्योंकि वे एक महिला थीं। वे बीएचयू आने से पहले ही राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेकर तीन बार जेल जा चुकी थीं। 1930 के नमक सत्याग्रह के दौरान दक्षिण भारत में चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और टी. प्रकाशम की गिरफ़्तारी होने पर ख़ुद टी. प्रकाशम ने दुर्गाबाई देशमुख को आंदोलन का अगला नेता चुना था।

ये वही दुर्गाबाई देशमुख थीं, जिन्होंने महज़ 12 साल की उम्र में काकीनाडा में देवदासी और मुस्लिम महिलाओं के साथ महात्मा गांधी से मुलाक़ात की थी। और महात्मा गांधी ने उन महिलाओं को संबोधित करते हुए कहा था कि वे देवदासी प्रथा के उन्मूलन और मुस्लिम महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए हरसंभव मदद देंगे।

किशोरावस्था से ही दुर्गाबाई ने आंध्र के तेलुगुभाषी इलाक़ों में होने वाले महात्मा गांधी की सभाओं में अनुवादक का काम किया था। वालंटियर के रूप में उन्होंने कांग्रेस प्रदर्शनी में प्रवेश देने से जवाहरलाल नेहरू को भी मना कर दिया था क्योंकि जवाहरलाल नेहरू के पास प्रदर्शनी का टिकट नहीं था।

उनके आरंभिक जीवन-संघर्ष और उनके अदम्य साहस के बारे में पढ़कर आंखे भर आती हैं। जुलाई 1909 में आंध्र के पूर्वी गोदावरी जिले में पैदा हुई दुर्गाबाई के पिता ने महज़ आठ वर्ष की आयु में ही उनका विवाह एक जमींदार के बेटे से कर दिया। पंद्रह वर्ष की होने पर दुर्गाबाई देशमुख ने उस विवाह को मानने से इंकार कर दिया। और इसकी सूचना उस व्यक्ति को भी दे दी, जिससे उनका विवाह हुआ था।

महज़ 12 साल की उम्र से ही वे राष्ट्रीय आंदोलन में सक्रिय हो गईं। किशोरावस्था में ही उन्होंने घरेलू हिंसा के विरोध में महिलाओं को संगठित किया। लड़कियों के शिक्षा के लिए उन्होंने चौदह साल की उम्र में ‘बालिका हिंदी पाठशाला’ की स्थापना की। चितरंजन दास, कस्तूरबा गांधी, मौलाना शौकत अली, सीएफ़ एण्ड्र्युज जैसे लोग दुर्गाबाई देशमुख के कामों से गहरे प्रभावित थे। जमनालाल बजाज जब पहली बार ‘बालिका हिंदी पाठशाला’ का निरीक्षण करने गए तो उन्हें यक़ीन ही नहीं हुआ कि यह छोटी-सी लड़की ‘बालिका हिंदी पाठशाला की प्रमुख है। वर्ष 1931 में उन्होंने करांची में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में उन्होंने भाग लिया था।

ये तमाम संघर्ष करते हुए उन्होंने वर्ष 1934 में प्राइवेट छात्र के रूप में आंध्र से ही बीएचयू की मैट्रिक की परीक्षा की उत्तीर्ण की। मदन मोहन मालवीय द्वारा उपेक्षित और हतोत्साहित किए जाने के बावजूद भी दुर्गाबाई ने आंध्र की लड़कियों को बीएचयू में पढ़ने के लिए तैयार किया और प्रोत्साहन दिया।

(संदर्भ : दुर्गाबाई देशमुख, ‘चिंतामण एंड आई’, एलाइड पब्लिशर्स)


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