ख़ालिद शेल्ड्रेक : जब एक ब्रिटिश मुस्लिम बना चीन का शासक


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ख़ालिद शेल्ड्रेक : द इंग्लिश अमीर ऑफ़ काश्गर

बेर्ट्रम विलियम शेल्ड्रेक का जन्म 1888 को लंदन में हुआ था, 1903 में इस्लाम क़बूल कर अपना नाम ख़ालिद रखा, और ख़ालिद शेल्ड्रेक के नाम से जाने गए. सिबिल नामक महिला से शादी की, जिसने इस्लाम क़बूल कर अपना नाम ग़ाज़ीया रखा. इनका अचार और मसाला बेचने का ख़ानदानी कारोबार था.

ये लिवरपूल वाले अब्दुल्लाह क्विलियम के क़रीबी थे, 1920 में Britain and India नाम का एक जर्नल निकाला, मुस्लिम न्यूज़ जर्नल के संथापक थे, The Minaret नाम के महनामा रिसाले के एडिटर थे. इसके इलावा इंग्लैंड में कई मस्जिद और मदरसे को स्थापित किया. लेख और अपने मज़हबी कामों की वजह कर इनका नाम सुदूर इलाक़ो तक पहुंचा, मलाया, हिंदुस्तान के इलावा चीन तक के लोग इन्हे जानने लगे, इन्हे मज़हबी मामलों पर लेक्चर देने के लिए बुलाया जाने लगा. 1932 में उनकी मक़बूलयत मुस्लिम दुनिया में उस समय और बढ़ गई जब उन्होंने ग्लेडिस मिल्टन पाल्मेर को इस्लाम में दाख़िल कर दिया, ग्लेडिस मिल्टन पाल्मेर सरवाक के आख़री राजा की बहु और बेर्ट्रम विल्लिस डैरेल ब्रूक की पत्नी थीं. ग्लेडिस मिल्टन पाल्मेर ने ख़ालिद शेल्ड्रेक के सामने ये शर्त रखी थी के वो ज़मीन के किसी ख़ित्ते पर इस्लाम क़बूल नहीं करेंगी, तब उनके लिये 42 सीट का एक चार्टेड प्लेन बुक किया गया, और इंग्लिश चैनल के उपर से उड़ते वक़्त उन्होने इस्लाम क़बूल किया और कलमा पढ़ा. मुस्लिम दुनिया में ये बात बहुत तेज़ी से फैली के एक ख़ालिद शेल्ड्रेक नाम का शख़्स है इंग्लैंड में; जो अंग्रज़ों को मुसलमान बना रहा. सिंगापूर से निकलने वाले अख़बार ‘द मलाया ट्रिब्यून’ ने 1930 में लिखा के तब्लीग़ी काम की वजह कर ख़ालिद शेल्ड्रेक को पुरी मुस्लिम दुनिया में जाना जाता है.

बात 1930 की है, चीन में काफ़ी उथल पुथल का दौर था, इसका फ़ायदा उठा हमेशा आज़ादी की माँग करने वाला चीन का सरहदी इलाक़ा ज़िनजियांग आज़ाद हो गया, पूर्वी तुर्कीस्तान नाम से एक छोटी रियासत वजूद में आई, अंतराष्ट्रीय मान्यता भी तक़रीबन मिल ही गई थी, पर कई पडोसी देश इसमें अड़ंगा लगाने लगे.

स्टालिन के हाथ में आ चुके रूस ने एक मुस्लिम राष्ट्र को अपने पड़ोस में मान्यता देने से इंकार कर दिया, अफ़ग़ानिस्तान के शाह ज़हीर चीन से अपना रिश्ता ख़राब नहीं करना चाहते थे, इसलिए उन्होने भी अपना पल्ला झाड़ दिया, पड़ोस में था ब्रिटिश इंडिया जो ख़ुद ग़ुलाम था, यहां तक के चीन के अंदरूनी मामले में भरपूर दख़ल डालने वाले जापान ने भी नये मुल्क का विरोध किया.

सन 1933 के नवंबर में पूर्वी तुर्किस्तान जिसे यूरोप के प्रेस में इस्लामिस्तान भी लिखा जाता था, यहां के क़बायली और जंगजू-गिरोहों ने मिल कर एक आज़ाद हुकूमत काश्गर में क़ायम करने को सोंची, जो चीन और सोवीयत यूनियन का हिस्सा नहीं हो.

डेढ़ लाख स्क्वायर किलोमीटर में फैला ये इलाक़ा उस समय बीस लाख लोगों का घर था. नई हुकूमत में हाजी नियाज़ राष्ट्रपति, साबित दामुल्ला प्रधानमंत्री और महमूद मुह्यति रक्षा मंत्री बनाये गए. अलग अलग राष्ट्र में उन्होने अपने नुमाइंदे भेजे, वहां के लोगों से मिले, पर किसी ने पूर्वी तुर्किस्तान में बनीं नई सरकार को मान्यता नहीं दी.

इसी में से नुमाइंदों का एक गुट अपने कारनामों से मुसलमानो में मशहूर हो चुके ख़ालिद शेल्ड्रेक के पास लन्दन पहुंचे. उन लोगों ने ख़ालिद शेल्ड्रेक को सिंक्यांग का बादशाह बनने की दावत दी. असल में तुर्किस्तान के इस क़बाइली इलाक़े में कई क़ाबिला आबाद थे, इनमे सत्ता की लड़ाई होने का अक्सर डर बना रहता था, इसलिए जिरगे में ये फ़ैसला लिया गया के किसी बाहरी को यहां का बादशाह बनाया जाये; जिस पर सबको यक़ीन और ऐतमाद हो, बस शर्त ये थी के वो मुसलमान होना चाहिए. इसमें उन्हें ख़ालिद शेल्ड्रेक से बेहतर कोई दूसरा नहीं मिला, कुछ किताब में ये भी ज़िक्र है के मुल्कबदर किये जा चुके उस्मानी सुल्तान के परिवार को भी इन्होने राबता क़ायम किया था.

इसके बाद 1933 में ख़ालिद शेल्ड्रेक ने मलाया के इलाक़े का दौरा किया, हांगकांग, फ़िलीपींस, सिंगापूर और मलेशिया के मुसलमानो से भेंट की, उनको बीच मज़हबी मुद्दों पर लेक्चर दिया. मई 1934 मे हांगकांग से निकल शंघाई होते हुवे पीकिंग पहुंचे, वहीं के एक होटल में उनसे मिलने पूर्वी तुर्किस्तान से मुअज़्ज़िज़ीन आये. तमाम लोगों ने झुक कर ख़ालिद के हाथ पर बोसा लिया, यानी चूमा, और अधिकारिक तौर पर उनसे बादशाह बनने की दरख़्वास्त की. उन्होंने क़बूल की, इस तरह एक आम आदमी “बादशाह” बना. इधर चीन की पुलिस ने इन पर नज़र बनाये रखा था, पर चुंकि ख़ालिद ब्रिटेन के नागरिक थे, इसलिए उन्होंने ख़ामोशी इख़्तियार कर रखा था. पूर्वी तुर्किस्तान की राजधानी काश्गर जाने से पहले ख़ालिद शेल्ड्रेक ने जापान और थाईलैंड का भी दौरा किया, विश्व के विभिन्न अख़बार ने उनके पर लेख छापा, जिसमे न्यूयोर्कटाइम्स, टाइम मैगज़ीन और टाइम्स ऑफ़ इंडिया प्रमुख हैं.

चीन की जानिब वापस लौटे ख़ालिद ने अपनी पत्नी ग़ाज़िया को ये पैग़ाम भेजवाया के अबसे वो मलका हैं और उनके दोनों बेटे शहज़ादे और उन्हें जल्द से जल्द चीन के पेकिंग पहुंचना चाहिए ताके वो इस्लामिस्तान की राजधानी काश्गर उनके साथ पहुँच सकें. ग़ाज़िया के हवाले से कई ख़बर ब्रिटेन के अख़बार में छपे; के एक ब्रिटिश नागरिक चीन का बादशाह बनने पर राज़ी हो गया है.

जून 1934 में अपनी पत्नी ग़ाज़िया के पेकिंग पहुंचने के बाद किंग ख़ालिद शेल्ड्रेक ने काश्गर का अपना सफ़र शुरू किया. 4500 किलोमीटर लम्बे इस रास्ते को ऊंट और ट्रेन से तय करना था. इधर ख़ालिद शेल्ड्रेक काश्गर पहुँचते उससे पहले ही कई मुसीबत काश्गर पहुँच गई, काश्गर की फ़िज़ाओं में ये अफ़वाह तैरने लगी के एक ब्रिटिश जासूस उनके यहां हुकुमत करने आ रहा है, जिससे इस्लामिस्तान पर ब्रिटेन की हुकूमत हो जाएगी. इधर चीन ने भी ब्रिटेन से ख़ालिद शेल्ड्रेक को ले कर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी. रूस के अख़बार ने ख़ालिद शेल्ड्रेक की कारगुज़ारी को ब्रिटेन वैसा ही डमी कारनामा बताया जैसा जापान ने मंचूरिया में किया. इधर इलाक़े पर पकड़ रखने वाले जापान ने भी अफ़ग़ानिस्तान की मदद से शेल्ड्रेक को रोकने का पूरा बंदोबस्त कर लिया.

इधर काश्गर में बना गठबंधन भी ढहने लगा, अलग अलग गुट बन गए और आपस में ही लड़ाई शुरू हो गई. साथ ही शिनजियांग पर कई वारलॉर्ड के हमले भी शुरू हो गए. महीना भर का सफ़र तय कर अगस्त के शुरआत में शिनजियांग पहुँचे ख़ालिद शेल्ड्रेक ने देखा के उनके आख़री वफ़ादार फ़ौजी दस्ते ने भी रूस के लिए काम कर रहे वारलॉर्ड के सामने सरेंडर कर दिया. और इस तरह शिनजियांग में बनने वाला इस्लामिस्तान वजूद में आने से पहले ही ख़्वाब में तब्दील हो गया. इसके बाद ख़ालिद शेल्ड्रेक ने अपने परिवार के साथ अपना रास्ता बदल हिंदुस्तान का रुख़ किया और हैदराबाद में रुके. चीन के साथ रूस ने राहत की सांस ली; क्युंकि उन्हें ख़ालिद शेल्ड्रेक के रुप में इलाक़े में ब्रिटेन की दख़ल का डर था, कुछ दिन हिंदुस्तान में अलग अलग शहर घूमने के बाद ख़ालिद शेल्ड्रेक वापस ब्रिटेन चले गए. वहां फिर से वो मज़हबी तब्लीग़ के साथ आचार वाले अपने ख़ानदानी धंदे में लग गए, लीबिया, मिस्र्र, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रीया सहित दुनिया के कई मुल्क का दौरा किया, दूसरी जंग ए अज़ीम के दौरान ब्रिटिश कौंसिल के लिए अंकारा गए, ब्रिटेन में मुल्कबदर किये गए एक बादशाह की हैसियत से 1947 में इंतक़ाल कर गए.


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Md Umar Ashraf

Md. Umar Ashraf is a Delhi based Researcher, who after pursuing a B.Tech (Civil Engineering) started heritagetimes.in to explore, and bring to the world, the less known historical accounts. Mr. Ashraf has been associated with the museums at Red Fort & National Library as a researcher. With a keen interest in Bihar and Muslim politics, Mr. Ashraf has brought out legacies of people like Hakim Kabeeruddin (in whose honour the government recently issued a stamp). Presently, he is pursuing a Masters from AJK Mass Communication Research Centre, JMI & manages heritagetimes.in.