अल्लामा सैयद सुलैमान नदवी :- हिन्दो पाक का एक अज़ीम आलिम ए दीन


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Khurram Malick

अल्लामा सय्यद सुलेमान नदवी का जन्म 22 नवंबर 1884 को बिहार के नालंदा ज़िला में मौजूद देसना गांव मे हुआ था।

उन्होंने नदवा लखनऊ से तालीम हासिल की और वहां वह उस्ताद भी हूए, आप उर्दू अदब के मश्हूर सीरत निगार (जीवनी लेखक), आलिम (जानकार), मोअर्रिख़ (इतिहासकार) और कई क़ाबिल ए क़द्र किताबों के मूसन्निफ़ (लेखक) थे। साथ ही आपने हिन्दुस्तान की जंग ए आज़ादी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया, ख़िलाफ़त और असहयोग आंदोलन के आदोंलन में आगे आगे रहे! आप जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्थापक सदस्य थे, आपने शेख़ उल हिन्द मौलाना महमूद उल हसन की अध्यक्षता में अलीगढ़ में 29 अक्टूबर 1920 को हुए जामिया मिल्लिया इस्लामिया संस्थापक समिती में हिस्सा लिया था।

आलम-ए-इस्लाम को जिन उलेमा पर नाज़ है उनमें सय्यद सुलेमान नदवी भी शामिल हैं उनकी इल्मी और अदबी अज़मत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है के जब उनके उस्ताद अल्लामा शिबली नोमानी (र.अ) सीरत-उन-नबी की पहली दो जिल्द लिख कर 18 नवम्बर 1914 को इंतेक़ाल कर गये तो बाक़ी चार जिल्दें सय्यद सुलेमान नदवी ने मुकम्मल की।

उनके पहले उस्ताद देसना के ख़लीफा अनवर अली और ओखदी के मकसूद अली थे। बाद में उन्होंने अपने बड़े भाई हकीम सय्यद अबू हबीब से तालीम हासिल की। उनके वालिद पटना के पास इस्लामपुर में एक चिकित्सक थे और स्थानीय समुदाय में एक बहुत सम्मानित व्यक्ति थे।

1899 में, वह फुलवारी शरीफ़ (बिहार) गए जहां वह मौलाना मोहियुद्दीन और सुलेमान फुलवारी के शिष्य बने। वहां से, वह दरभंगा गए जहां उन्होंने मदरसा इमदादिया में कुछ महीनों तक पढ़ाई की, 1901 में, उन्होने लखनऊ के दारुल-उलूम नदवतुल उलमा में दाख़िला लिया। उन्होंने नदवा में सात साल तक पढ़ाई की। उन्हें रिसाला, अल-नदवा का सब एडिटर भी नियुक्त किया गया था। उनका पहला लेख, वक़त (समय) अब्दुल क़दीर द्वारा संपादित मासिक उर्दू जर्नल माखज़न में प्रकाशित हुआ था। मौलाना शिब्ली नोमानी लखनऊ आए और उन्हें ‘नदवा का सेक्रेट्री’ मुंतख़िब किया गया, सुलेमान नदवी उनसे बहुत प्रभावित थे। 1906 में, उन्होंने नदवा से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। सुलेमान नदवी और अबुल कलाम आज़ाद दोनों मौलाना शिब्ली नोमानी के पसंदीदा विद्यार्थियों थे। 1908 में, सुलेमान नदवी को दार-उल-उलूम नदवा में आधुनिक अरबी और धर्मशास्त्र के प्रशिक्षक नियुक्त किया गया था।

आपने कई किताबें लिखीं जिसमे सीरत-उन-नबी, अरब-ओ-हिंद के ता’अल्लुक़ात, हयात-ए-शिबली, रहमत-ए-आलम, नुक़ूश-ए-सुलेमान, हयात इमाम मालिक, अहल-उस-सुननःवल जमा’अः, याद ‘रिफ़तेगां, सैर अफ़ग़ानिस्तान, मक़ालात-ए-सुलेमान, दुरूस-अल-अदब ख़य्याम, ख़ुत्बात-ए-मदारिस, अर्ज़-उल-क़ुरान, हिंदुओं की तालीम तरक़्क़ी में मुसलमान हुकूमरानों की कोशिशें क़ाबिल ए ज़िक्र है। आपके काम को सराहते हुए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय ने आपको 1941 में डॉक्टरेट ऑफ लिटरेचर (डीएलआईटी) की मानद उपाधि प्रदान की। आप भोपाल रियासत के क़ाज़ी बने और वहीं से आपकी सीरत-उन-नबी शाय हुई।

तक़सीम हिंदुस्तान के बाद जून 1950 में सारी इमलाक हिंदुस्तान में छोढ़ कर हिजरत कर के पाकिस्तान आ गए और कराची में बस गए। यहां मज़हबी, इल्मी सिलसिला जारी रखा,हुकूमत पाकिस्तान की तऱफ से तालीमात-ए-इस्लामी बोर्ड के अध्यक्ष मोक़रर्र हुए। 69 साल की उमर में कराची में ही 23 नवंबर 1953 इंतेक़ाल किया।


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