अतीत के सुराग तलाशता इतिहासकार : कार्लो गिंजबर्ग


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Shubhneet Kaushik


दिग्गज इतालवी इतिहासकार कार्लो गिंजबर्ग कुछ दिनों के लिए भारत आए हुए हैं। कार्लो गिंजबर्ग के कृतित्व से मेरा परिचय बीएचयू में इतिहास के हमारे शिक्षक ध्रुब कुमार सिंह ने कराया था। वे अक्सर अपनी कक्षाओं में कार्लो गिंजबर्ग की प्रसिद्ध रचना ‘द चीज़ एंड द वर्म्स’ का हवाला देते थे। सोलहवीं सदी के एक इतालवी मिलर मेनोसियो पर चलने वाले मुकदमे का वृत्तान्त बताते हुए यह किताब इटली के तत्कालीन समाज और संस्कृति, धार्मिक मान्यताओं और धारणाओं का दिलचस्प ब्यौरा देती है।

माइक्रो-हिस्ट्री के पैरोकार कार्लो गिंजबर्ग के लेखन में अक्सर सुराग (‘क्लू’) शब्द का व्यवहार होता है। अतीत से जुड़े इन सुरागों में इतनी गहरी दिलचस्पी रही है उनकी कि 1980 में ‘हिस्ट्री वर्कशॉप’ में छपे उनके लेख ‘मोरेली, फ्रायड एंड शरलॉक होम्स’ का उपशीर्षक ही था ‘सुराग और वैज्ञानिक प्रविधि’ (क्लूज़ एंड साइंटिफिक मेथड)।

इस लेख में गिंजबर्ग ने दर्शाया है कि कैसे कला के इतिहासकार जियोवानी मोरेली ने उन्नीसवीं सदी में लिखे गए अपने लेखों में कलाकृतियों और उनके कलाकारों को पहचानने के सुराग ढूँढने की प्रविधि के बारे में लिखा। फिर आर्थर कानन डायल के जासूसी किरदार शरलाक होम्स और मनोविश्लेषण के जनक सिगमंड फ्रायड के उदाहरण के जरिए कार्लो गिंजबर्ग समझाते हैं कि लोगों ने कैसे दुनिया को देखा और समझा, कैसे उन्होंने ज्ञान इकट्ठा किया और उसे व्यवस्थित किया। वे फ्रेमवर्क और सामाजिक संरचनाएँ कैसी थीं, जिनमें लोगों ने सूचनाओं, धारणाओं और प्रेक्षणों को जमा किया।

अपनी सबसे प्रसिद्ध किताब ‘चीज़ एंड वर्म्स’ के बारे में गिंजबर्ग ने लिखा है कि ‘जैसा अक्सर होता है इस किताब व इसके शोध से एक संयोग जुड़ा हुआ है।’ यह संयोग घटित हुआ जब वे अपनी पहली किताब ‘द नाइट बैटल्स’ लिख रहे थे। जोकि सोलहवीं-सत्रहवीं सदी के इटली में डायनों, ओझा-सोखा, शमन और फ्रियूली के बेनंदांती संप्रदाय के इतिहास के बारे में थी। 1962 में ‘द नाइट बैटल्स’ लिखते हुए शोध के सिलसिले में इतालवी शहर उदीन के अभिलेखागार में उन्हें इटली के मिलर मेनोसियो पर चले मुकदमे की फाइल मिली।

‘मेनोसियो’ के नाम से चर्चित डोमेनिको स्केंडेला पर यह आरोप था कि वह यह मानता है कि दुनिया चीजों के सड़ने (putrefaction) से बनती है। ’66 में अपनी पहली किताब के प्रकाशित होने के चार साल बाद गिंजबर्ग ने मेनोसियो के मुकदमे के इतिहास पर काम शुरू किया।

यह मुकदमा और इसके दस्तावेज़ मेनोसियो के विचारों, उसके द्वारा पढ़ी गई किताबों, उसकी चर्चाओं की ही जानकारी नहीं देते। बल्कि ये मेनोसियो की आकांक्षाओं, उसकी आशा-निराशा, उसके डर व गुस्से जैसी सूक्ष्म भावनाओं से भी हमें परिचित कराते हैं। गिंजबर्ग मिखाइल बाख्तिन की ‘सर्कुलरिटी’ की धारणा का इस्तेमाल मेनोसियो की दुनिया को समझने में करते हैं। जिसके अनुसार औद्योगिक काल से पूर्व के यूरोपीय समाज में वर्चस्वशाली और अधीनस्थ (सब-ऑर्डिनेट) वर्गों की संस्कृतियों के बीच अन्योन्याश्रित संबंध था और वे एक-दूसरे पर प्रभाव डालती थीं।

मेनोसियो पर लिखते हुए वे एक व्यक्ति के जीवन के जरिए तत्कालीन समाज और इतिहास के किसी कालखंड के सभी सामाजिक संस्तरों के बारे में जानने की संभावना भी रेखांकित करते हैं। इसी क्रम में वे बताते हैं कि यदि ऐतिहासिक स्रोत वस्तुनिष्ठ न हों तो इसका तात्पर्य यह नहीं कि वे व्यर्थ हैं। एक कुशल इतिहासकार वही है, जो इन स्रोतों से भी अतीत को जानने-समझने के सुराग ढूंढ निकाले। कार्लो गिंजबर्ग की अन्य प्रमुख किताबें हैं : ‘वुडेन आइज़’, ‘द जज एंड द हिस्टोरियन’, ‘थ्रेड्स एंड ट्रेसेज़’, ‘एक्सटेसीज’। जरूर पढ़ें कार्लो गिंजबर्ग के अनूठे इतिहासलेखन को।


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